रामनगर। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने गुरुवार को वन विभाग द्वारा रामनगर में आयोजित ‘‘उत्तराखण्ड में सरंक्षण और समुदायः सद्भाव का एक प्रमाण’’ कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ करते हुए कहा कि वन एवं वन्य जीव से जुड़ी चुनौतियों के समाधान के लिए जन सहभागिता जरूरी है।
राज्यपाल ने कहा कि उत्तराखण्ड की महिलाएं वनाग्नि से जुड़ी चुनौतियों के समाधान में अहम भूमिका निभा सकती हैं। चिपको आंदोलन का जिक्र करते हुए राज्यपाल ने कहा कि जिस प्रकार महिलाओं ने चिपको आंदोलन चलाकर पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसी प्रकार वनाग्नि से जुड़ी चुनौतियों के समाधान हेतु वे क्रांति ला सकती है।
राज्यपाल ने बदलते सामाजिक परिपेक्ष्य में मानव वन्यजीव संघर्ष निवारण, वनाग्नि प्रबंधन एवं इको टूरिज्म से आजीविका संवर्धन जैसे मुद्दों से संबंधित विविध विषयों पर वक्तव्य देते हुए इन विषयों पर विभागीय प्रयासों को सराहा।
राज्यपाल ने कहा कि आज की चर्चा गंभीर संरक्षण चुनौतियों से निपटने में समुदायों और वन विभाग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व को रेखांकित करती हैं। निरंतर साझेदारी और नवाचार के साथ, उत्तराखंड के वनों और वन्य जीवों का भविष्य आशाजनक है।
प्रदेश में बाघों की आबादी 560 हुई
डॉ0 धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड द्वारा जानकारी दी गई कि प्रदेश में सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से, बाघों की आबादी 178 से बढ़कर 560 हो गई है, और पक्षी विविधता 710 प्रजातियों के साथ विकसित हुई है। स्थानीय समुदाय, अपने वन संसाधनों से गहराई से जुड़े हुए हैं, वन्य जीवों के साथ पारस्परिक सह-अस्तित्व सुनिश्चित करते हुए 11,000 से अधिक वन पंचायतों का प्रबंधन करते हैं।
उनके द्वारा कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि हालांकी चुनौतियां बनी हुई हैं, विशेषकर मानव वन्य जीव संघर्ष और वनों की आग, परन्तु ‘‘तेंदुओं के साथ रहना’’ जैसे नवोन्मेषी दृष्टिकोण समुदायों को संघर्षों को कम करने में मदद करते हैं, जबकि शीतलाखेत जैसी स्थानीय पहल प्रभावी अग्नि प्रबंधन और वन पुनर्जनन को प्रदर्शित करती हैं।
डॉ0 समीर सिन्हा ने उत्तराखंड की समृद्ध वन्य जीव विविधता और संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के बारे में बात की। उन्होंने बाघ, आम तेंदुए जैसे बड़े मांसाहारी, हाथी जैसे शाकाहारी हिम तेंदुए की आबादी के अनुमान पर डेटा साझा किया। उन्होंने मानव मृत्यु और चोट की घटनाओं के साथ-साथ वन्यजीवों की बढ़ती आबादी की चुनौतियों के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि सर्प जनित मौतें एवं चोटें सबसे अधिक पिथौरागढ़ जिले में हैं।
श्री नरेश कुमार ने उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों जैसे धनोल्टी, देवलसारी, मुनस्यारी आदि में की गई पहल और अनुसंधान विंग द्वारा विकसित अन्य उद्यानों और पार्कों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने पर्यावरण पर्यटन स्थलों में विभिन्न आवास सुविधाओं और वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों को शामिल करने के लिए स्थानीय समुदायों, प्रकृति गाइडों, त्योहारों की क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण आवश्यकताओं में सुधार के लिए की गई गतिविधियों के बारे में जानकारी दी।
डॉ कोको रोसे तथा श्री0 राजेश भट्ट, पर्यावरणविद् द्वारा मानव वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन पर नवोन्मेषी कार्य और सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण कर टिहरी जनपद में तेंदुए के साथ रहने के कार्यक्रम के मामले के अध्ययन के परिणामों को साझा किया गया।
श्री महातिम यादव तथा श्री० गजेन्द्र पाठक, फार्मासिस्ट अल्मोड़ा द्वारा वनाग्नि प्रबंधन पर नवोन्वेषी कार्य और सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण करते हुए अल्मोड़ा रेंज के शीतलाखेत मॉडल के परिचालन एवं परिणामों का विश्लेषण कर इसकी अन्य जनपदों में क्रियान्वयन किए जाने पर विचार रखे। श्री दिगांथ नायक द्वारा उत्तराखंड में इकोटूरिज्म पर आधारित नवोन्वेषी कार्य के सम्बन्ध में सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण दिया।